आम आदमी
आम आदमी
हर तरफ भीड़ का हिस्सा है आम आदमी
कहीं भी शामिल ना हो वो किस्सा है आम आदमी।
अपनी कोई खबर कभी रखता नहीं है वो
अपनों की हरकतों से परेशां है आम आदमी।
लाज़िम है सबका उससे मुँह फेर लेना हरदम
हरजगह नज़रअंदाज़ ही रहा है आम आदमी।
जरुरत और इच्छाओं के बीच है गहरी बड़ी खाई
हरदम गिर के चोट खाता रहा है आम आदमी।
हताश निराश अपनी तक़दीर की लकीरों से
ताउम्र मज़बूरी क़ो ढोता रहा है आम आदमी।
रोटी, कपड़ा, मकान की ख्वाहिशों में बस
हर मोड़ पर पिसता आया है आम आदमी।
खास बनने की जद्दोजहद में हरदिन यहाँ
अस्तित्व हर बार खोता आया है आम आदमी।
आभार – नवीन पहल – १५.०२.२०२२ 🌹💐🙏🏻🙏🏻
# लेखनी वार्षिक कविता प्रतियोगिता हेतु
Swati chourasia
01-Mar-2022 03:58 PM
बहुत खूब 👌
Reply
Seema Priyadarshini sahay
18-Feb-2022 11:50 PM
बहुत खूबसूरत रचना
Reply
राजीव भारती
15-Feb-2022 11:32 PM
जी बेहतरीन प्रस्तुति।
Reply